अमरनाथ के अमर कबूतर - Chetna Shukla


स्थायी :-     अमर नाथ के अमर कबूतर 
    अमर कथा का सार 
    कैलाशी शिव शंकर 
    बोलो हर हर महादेव 
                 १.
M:-    अमरनाथ की सुनो कहानी 
    पतित पावनि अति कल्याणी 
    अमर नाथ की कथा है अनुपम 
    अमर गुफा से होती उदगम
    वेद पुराणों ने है गाया
    अमरनाथ का सार बताया 
    शिवलिंग के बाबा बर्फानी 
    शिव शम्भु भोले वरदानी 
    गुफा बिराजे शिखर के ऊपर 
    दर्शन देते जहाँ कबूतर 
    अमर कथा सुन अमर हो गए 
    मृत्यु के डर से निडर हो गए 
    जो भी इनके दर्शन पाये
    मोक्ष धाम उसको मिल जाए 
    अमरनाथ जी के दर्शन करके 
    हो जाए भव पार 
    कैलाशी शिव शंकर
कोरस:-      बोलो हर हर महादेव 
                        २
M:-    एक बार शिव भोले शंकर 
    बना के अपना भेष भयंकर 
    बन गए पुरे औघड़दानी 
    शिव शम्भु भोले शमशानी 
    मुण्डमाल का हार गले में 
    बैठे गये वो डार गले में 
    पारवती ने जब ये देखा 
    शिव शंकर का रूप अनोखा 
    मन ही मन वो सोच रही है 
    रूप अनोखा देख रही है 
    डूब गयी अचरज में माता 
    कुछ भी उनकी समझ ना आता 
    भेद है केसा मुंड माल का 
    खेल है केसा महाकाल का 
    पारवती माता के मन में 
            मचा था हाहाकार
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-      बोलो हर हर महादेव 
                    ३
M:-    पारवती शिव पास में जाके 
    उनसे बोली शीश नवाके 
    मेरे मन का वेग मिटादो 
    मुंड माल का भेद बतादो 
    मुंड माल का राज है केसा 
    राज ये हे गणराज है कैसा 
    हाथ जोड़ मैं करू  निवेदन 
    उत्तर दो है नाथ निकेतन 
    मुस्काये भोले वरदानी 
    फिर बोले भोले मृदुवाणी 
    जितने जनम लिए है तुमने 
    मुण्डमाल में मुंड है उतने 
    लोगी जनम और तुम जितने 
    मुंड बढे माल पे उतने 
    इसी लिए पहना है मेने 
    मुण्डमाल का हार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव
                 ४
M:-    पारवती लग गयी चरण से 
    मुक्त करो मुझे जनम मरण से 
    विनय सुनो है औघड़ दानी 
    मुझे सुना दो अमर कहानी 
    जनम मरण से मुक्ति पाउ  
    कथा सुना दो तृप्ति पाऊ
    शिव बोले हठ करो ना देवी 
    चलनी में जल भरो ना देवी 
    नियम के ये विपरीत है देवी 
    नहीं नियम की रीत है देवी 
    करो ना देवी तुम नादानी 
    मन से भुला दो अमर कहानी 
    पारवती माँ रूठ गयी फिर 
    मुंह लटका के बैठ गयी फिर 
    फेंक दिए सब गहने माँ ने 
    फेक दिया गल हार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव 
                   ५
M:-    हार गए शिव पारवती से 
    जीत ना पाए नार हठी से 
    बोले नाथ मधुर वाणी में 
    क्रोध देख के रुद्राणी में 
    उठो प्रिये अब क्रोध छोड़ दो 
    पारवती अब क्षोभ छोड़ दो 
    मन से तुम्हारे भरम मिटा दू
    अमर कथा के नियम बता दू  
    शीतल मन काया निर्मल हो 
    ह्रदय शांत हो ना चंचल हो 
    वातावरण हो शांत जहाँ पे 
    बिलकुल हो एकांत वहां पे 
    मिलो तलक ना हो कोई प्राणी 
    जगह जगत से हो अनजानी 
    एक शब्द भी अमर कथा का 
    सुने ना ये संसार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस:-     बोलो हर हर महादेव 

            
            6
M:-    चलो हमारे साथ चलो तुम 
    मान लो मेरी बात चलो तुम 
    पारवती झट साथ चल पड़ी 
    मन में ले जज्बात चल पड़ी 
    तीनो लोक में घूम रहे है 
    उत्तम स्थल ढूंढ रहे है 
    गगन धरा पाताल घूमते 
    बीत गए कई साल घूमते 
    मनवांछित स्थान न पाते 
    जगह कोई सुनसान ना पाते
    चलते फिरते और विचरते 
    नंदी हार  गए चल चल के 
    गणपति जी कुछ समझ न पाए 
    मन ही मन में गणित लगाए 
    माता पिता के मन में क्या है 
    सोच रहे सौ बार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव 
                          ७
M:-    हर कोई मन में सोच रहा है 
    लेकिन कुछ ना बोल रहा है 
    महादेव के मन में क्या है 
    ना जाने क्या सोच रखा है 
    शिव शंकर ने मन में सोचा 
    एक नजर नंदी को देखा 
    नंदीश्वर से बोले शंकर 
    नंदी जी तुम रुको यही पर 
    नंदीजी को छोड़ चले वो 
    पवन गति से दौड़ चले वो 
    नंदी जी को छोड़ा जहाँ पर 
    पहलगाम है आज वहां पर 
    आया फिर भोले जी के मन 
    कहाँ पे छोड़ू गणपति नंदन 
    मस्तक चंदा शीश में गंगा 
    नाग गले का हार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     हर हर महादेव 
         
                      8
M;-    जहाँ आज है चंदनवाड़ी 
    वहां रुके भोले त्रिपुरारी 
    वहां पे छोड़ा चंद्र भान को  
    ना सुनले वो कथा ज्ञान की
    पारवती कुछ बोल ना पाए 
    सोच के मन ही मन रह जाए 
    गणपति जी हैरान हो रहे 
    वो तो बड़े परेशान हो रहे 
    चले जा रहे तीनो प्राणी 
    पीछे ना देखे वरदानी 
    आज जहाँ पंच तरणी गंगा 
    वहां छोड़ी थी जटा की गंगा 
    गंगा छोड़ बढे जब आगे 
    चले जा रहे रस्ता साधे
    शेष नाग है आज जहाँ पर 
    रुके वहां पल चार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस:-     बोलो हर हर महादेव
                   ९
M:-    नाग गले का छोड़ा वहां पे 
    शेष नाग है आज जहाँ पे 
    गणपति जी के मन में आया 
    महादेव की कैसी माया 
    सबको आखिर छोड़ रहे क्यों 
    नाता सबसे तोड़ रहे क्यों 
    पारवती चुपचाप जा रही 
    कुछ भी ना वो सोच पा रही 
    गणेश टाप है आज जहाँ  पर 
    पहुंचे भोले नाथ वहां पर 
    बोले  भोले गणपति जी से 
    कुछ दिन तक तुम रहो यही पे 
    लौट के वापिस जब आएंगे 
    साथ तुम्हे फिर ले जायेंगे 
    पारवती कुछ बोल न पायी 
    रह गयी मन को मार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव 
               १०
M:-    पंच तत्व का विलय कर चले 
    पारवती को अभय कर चले 
    पहुंच गए एकांत वास में 
    कोई नहीं था आस पास में 
    पड़ी दिखाई गुफा सुहानी 
    दूर तलक कोई दिखे ना प्राणी 
    पारवती से बोले शंकर 
    आ जाओ उस गुफा के अंदर 
    यहाँ शांत एकांत वास है
        कोई यहाँ ना आस पास है 
    पतित उचित स्थान यही है 
    शिखरों के दरम्यान यही है 
    गुफा के अंदर चले गए वो 
    एक शिला पर बैठ गए वो 
    उग्र रूप धर डमरू बजाया
    शिव ने भरी हुंकार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव 
                    ११.
M:-    कांप उठी थी चारो दिशाए 
    थम गए बादल थमी हवाएं 
    जितने भी थे थलचर  नभचर  
    लगे कांपने  थर थर थर थर 
    प्राण बचा के वहां से भागे  
    डम डम डम डम डमरू बाजे 
    जहाँ तलक डमरू ध्वनि जाए 
    वहां तलक कोई नजर ना आये 
    सूक्ष्म जीव भी रहा ना कोई 
    जीव रहा अब वहां ना कोई 
    पारवती के मन थी हलचल 
    देख रही  भोले को पल पल 
    प्रलय मचाता  डम डम डमरू 
    आग उगलते शिव के घुंगरू 
    गूंज रही थी गुफा में जैसे 
    प्रलय की झंकार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव
        12.
M:-    शांत हुए जब शिव वरदानी 
    पारवती से बोले वाणी 
    अमर कथा प्रारम्भ करू जब 
    पारवती शुभारम्भ करू जब 
    बिच बिच हुंकारी भरना 
    पल की  नहीं बिसारी करना 
    जब तक कथा का अंत ना आये 
    याद रहे ना निद्रा आये 
    भोले शिव भोले अविनाशी 
    ना करना तुम भूल जरा सी 
    पारवती कर जोड़ के बोली 
    है भोले मैं नहीं हूँ भोली 
    शुरू करो अब अमर कहानी 
    निद्रा उबासी हमे ना आनी
    आंखे अपनी मूंद ली शिव ने 
    किया ज्ञान विस्तार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस:-     बोलो हर हर महादेव 
                   १३
M:-    अमर कथा प्रारम्भ हो गयी 
    शुभ घड़ी में शुभारम्भ हो गयी 
    पारवती हुनकारी भरती
    नियम से बारी बारी भरती 
    अमृत धरा बही गुफा में 
    पारवती सुन रही गुफा में 
    समय का पहिया चलता जाये
    अमर कथा का अंत ना आये
    बैठे बैठे थक गयी माता 
    अब माता से रहा ना जाता 
    आँखों में निंद्रा घिर आयी 
    पारवती माँ रोक ना पायी 
    कभी नींद की झपकी भरती 
    बिच बिच में हूँ हाँ करती 
    लड़ते लड़ते पारवती माँ 
    निंद्रा से गयी हार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-      बोलो हर हर महादेव 
             १४
M:-    निंद्रा जीती माता हारी 
    रुक गयी माता की हुंकारी 
    गहरी नींद में सो गयी माता 
    नींद सुनहरी सो गयी माता 
    अमर कहानी चले निरंतर 
    शिखर के ऊपर गुफा के अंदर 
    वही कपोत का भ्रूण धरा था 
    जीवन से सम्पूर्ण भरा था 
    शनैः शनैः वो बड़े हो गये
    जोड़े जैसे खड़े हो गये
    अमर कथा का आनंद लुटे 
    एक भी शब्द ना उनसे छूटे 
    कपोत का जोड़ा बारी बारी 
    दोनों भरते है हुंकारी 
    सुने कबूतर अमर कहानी 
    अमर कथा का सार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-    बोलो हर हर महादेव 
                    १५.
M:-    शिला पे सोई पारवती माँ 
    स्वप्न में खोई पारवती माँ 
    अमर कहानी चले निरंतर 
    बैठ के दोनों सुने कबूतर 
    कथा विराम हुई है जिस पल 
    गुफा में कोई नहीं थी हलचल 
    नेत्र खुले जब शिव शंकर के 
    नजर पड़ी जब पारवती पे 
    देख के ये चकराए भोले 
    पारवती को उठाये भोले 
    बैठे थे जो गुफा के ऊपर 
    सन्न हो गये श्वेत कबूतर 
    क्रोध में आ बोले त्रिपुरारी 
    व्यर्थ करा दी कथा हमारी 
    पारवती तुम्हे कथा सुनाने 
    लाया यहाँ बेकार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव 
               १६
M:-    हाथ जोड़ माँ करे याचना 
    करू नाथ में क्षमा प्रार्थना 
    निंद्रा के वश हो गयी थी में 
    कथा बिच में सो गयी थी में 
    बोले भोले क्रोधित वाणी 
    यहाँ कौन है दूजा प्राणी 
    समझ कौन ये सार रहा था 
    कौन है जो हुंकार रहा था 
    पारवती तुम की नादानी 
    सुनी ना पूरी अमर कहानी 
    बोले भोले हमे दो उत्तर 
    पारवती जी खड़ी निरुत्तर 
    शिव शंकर जी क्रोध में आके 
    गरज पड़े त्रिशूल उठा के 
    कौन यहाँ है छुपके बैठा 
    किसने भरी हुंकार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव 
                   १७
M:-    जो भी है वो सामने आये 
    या फिर अपने प्राण गवाए 
    सुनी है छुपके अमर कहानी 
    कौन है वो दुस्साहसी प्राणी     
    जो भी है तत क्षण आ जाये 
    बिन सोचे बिन समय गवाए 
    बैठे थे जो गुफा के अंदर 
    आ गये दोनों श्वेत कबूतर 
    दोनों काँप रहे थे थर थर  
    उन्हें जान जाने का था डर
    बोले मम अपराध क्षमा हो 
    है शिव भोलेनाथ क्षमा हो 
    क्रोध में आ गये शिव त्रिपुरारी 
    नेत्र उगल रहे थे चिंगारी 
    बोले तुम दोनों को नहीं है  
    जीने का अधिकार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव
                   
        १८
M:-    दोनों करते नम्र निवेदन
    हमको क्षमा करो है भगवन 
    सुनो नाथ भोले वरदानी 
    सुनी है हमने अमर कहानी 
    आपने हमको अमर किया है 
    मृत्यु से हमको निडर किया है 
    अगर हमारे प्राण हरोगे 
    अमर कथा का त्राण करोगे 
    अमर कथा के पूरक है हम 
    अमर गुफा के सूचक है हम 
    द्रवित हो गये भोले शंकर 
    दया आ गयी उनके ऊपर 
    शिव शंकर बोले मृदुवाणी 
    अमर हो गये तुम दो प्राणी 
    युगो युगो तक तुम्हे देखने 
    आएगा संसार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव 
                   १९
M:-    पारवती माता शिव शंकर 
    गुप्त हुए हिम लिंग के अंदर 
    अमर हो गये श्वेत कबूतर 
    बैठे रहते गुफा के भीतर 
    युग बीते और सदिया गुजरी 
    बनके रहते गुफा के प्रहरी 
    बूटा  मलिक नाम का बूढ़ा 
    जिसने था उस गुफा को ढूंढा 
    भेड़ चराता था वो शिखर पर 
    जिसने देखि गुफा थी सुन्दर 
    एक दिन आया भेड़ चराकर 
    भेड़ो की गिनती की आकर 
    एक भेड़ रह गयी शिखर पर 
    चला ढूंढ़ने उसे डगर पर 
    बूटा मलिक जब निकला घर से 
    हो रहा था अंधकार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव
                  २०
M:-    बूटा  मलिक मगन मन होके
    इधर उधर वो भेड़ को देखे 
    मिल गया उसको एक सन्यासी 
    बूटा  मलिक बनके अभिलाषी 
    बोला आप कौन हो स्वामी 
    मुझे बताओ अन्तर्यामी 
    पहली बार मैं देख रहा हूँ 
    इसीलिए मैं पूछ रहा हूँ 
    साधु बोला हाथ बढ़ाओ 
    ये है कोयला घर ले जाओ 
    बूटा मलिक कुछ समझ ना पाया 
    लेके  गठरी घर वो आया 
    सोना बन गया कोयला सारा 
    बूटा  मलिक अचरज का मारा 
    निकल पड़ा साधु को ढूंढ़ने 
    हिम शिखरों के पार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव 
                   २१
M:-    मिला नहीं उसको सन्यासी 
    कहाँ गया वो पर्वत वासी 
    बूटा मलिक ने हार ना मानी
    ढूंढ के मानु मन में ठानी 
    पहुंच गया वो उच्च शिखर पर 
    अमर नाथ की गुफा जहाँ पर 
    जब पंहुचा वो गुफा के अंदर 
    शिवलिंग देखा उसने सुन्दर 
    बूटा  मलिक डूबा हैरत में 
    हिमलिंग था शिव की सूरत में 
    उड़के आये दोनों कबूतर 
    दर्शन दे जा बैठे ऊपर 
    हिमलिंग में कर शिव के दर्शन 
    बूटा  मलिक ने की शिव वंदन 
    जय शिव भोले जय शिव शम्भु 
    करने लगा जैकार 
    कैलाशी शिव शंकर 
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव 
                 २२
M:-    पहला दर्शन अमरनाथ के 
    बूटा मलिक ने किये नाथ के 
    प्रतिदिन गुफा में जाने लगा वो 
    धुप और दीप जलाने लगा वो 
    दर्शन देते श्वेत कबूतर 
    बैठे रहते गुफा के ऊपर 
    श्रावण मास में दर्शन मिलते 
    शिवलिंग में शिव शंकर जी के 
    जो भी यहाँ दर्शन करता है 
    पाप कटे वो भव तरता है 
    अमरनाथ के करके दर्शन 
    कट जाये भव भव के बंधन 
    अमर नाथ के अमर कबूतर 
    करते है कृपा सबके ऊपर 
    दया करो सुखदेव पे बाबा 
    विनती बारम्बार 
    कैलाशी शिव शंकर     
कोरस :-     बोलो हर हर महादेव 
 

Singer - Chetna Shukla