इस विधि से मनाएं जन्माष्टमी, पापों से मुक्ति और सुख समृद्धि दिलाएंगे श्रीकृष्ण (Celebrate Janmashtami with this method, Shri Krishna will give freedom from sins and bring happiness and prosperity) - Traditional
GaanaGao2 year ago 386birth anniversary of Lord Shri Krishna: भगवान श्री कृष्ण की जयंती देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी कई (बहुत )जगहों पर बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाई जाती है। जन्माष्टमी का पावन पर्व भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी रात मथुरा में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। कृष्ण जन्मोत्सव पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार व्रत रखते हैं और संयम से श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा करते हैं। बताया जा रहा है कि इसी महीने की 18 तारीख को ध्रुव और वृद्धि योग बन रहा है। यह योग 18 की रात 8:42 बजे तक रहेगा। इसके बाद से ध्रुव योग शुरू हो जाएगा। यह योग 19 तारीख की रात 8:59 बजे तक रहेगा। ऐसा माना जाता है कि हिंदू धर्म में इन योगों का विशेष महत्व है। इस योग में किए गए कार्य आपके लिए लाभकारी साबित होता है।
जन्माष्टमी पूजा का ये है सही शुभ मुहूर्त
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बताया जा रहा है कि जन्माष्टमी 2022 का शुभ मुहूर्त 18 अगस्त को है. अष्टमी तिथि 18 अगस्त को रात 9:20 बजे से शुरू हो रही है और 19 अगस्त को रात 10:59 बजे समाप्त हो जाएंगे. निशीथ पूजा 18 अगस्त की रात 12:03 से 12:47 बजे तक होगी। इसके अलावा निशीथ पूजा की कुल अवधि 44 मिनट की होगी और 19 अगस्त को सुबह 5:52 बजे के बाद पारण होगा.
ऐसे होती है पूजा (This is how worship happens)
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति इस दिन विधि-विधान से व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन यम के नियमों का पालन करते हुए व्रत रखने का भी विधान है, लेकिन व्रत हमेशा स्वास्थ्य की अनुकूलता के आधार पर ही रखना चाहिए। घरों और मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण की सुंदर झांकी को सजाने के साथ-साथ भजन, कीर्तन और लीलाओं का भी आयोजन किया जाता है। शाम को झूला बनाकर लड्डू गोपाल यानि बाल कृष्ण को झूला झूलते हैं। रात्रि में आरती के बाद दही, मक्खन, पंजीरी, फल, मेवा, मिठाई आदि चढ़ाने के बाद बांटे जाते हैं। कुछ लोग रात में पारण ( व्रत खोलना ) करते हैं तो कुछ दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर पारण करते हैं।
श्रीकृष्ण जन्म कथा (shri krishna birth story)
द्वापर युग में मथुरा नगरी में राजा उग्रसेन का राज्य था, उनका पुत्र कंस प्रतापी होने के साथ-साथ अत्यंत निर्दयी भी था। वो खुद को भगवान बताता था और प्रजा से अपनी पूजा करवाता था साथ ही उन बेबस लोगों पर अत्याचार bhi karta था, और इतना ही नहीं अपने ही पिता को भी जेल में डाल दिया था। उसके अत्याचारों से दुखी होकर देवताओं ने पहले ब्रह्मा जी से और फिर विष्णु जी से प्रार्थना की। विष्णु ने कहा कि "मैं जल्द ही वासुदेव की पत्नी और कंस की बहन देवकी के गर्भ से ब्रज में जन्म लूंगा, तुम भी ब्रज में जाओ और अपना शरीर यादव कुल में ले लो।" जब वासुदेव और देवकी का विवाह हुआ, और देवकी विदा हो रही थी तभी एक आकाशवाणी हुई, की हे कंस तू जिस बहन को इतने लाड़ प्यार से विदा करने चला है, उसी देवकी का आठवां पुत्र तेरा काल होगा। यह सुनकर कंस क्रोधित हो गया और देवकी, वासुदेव को उसी समय कारगार में डाल दिया। कंस ने देवकी की सातों संतानों का निर्दयता से वध किया।
श्रीकृष्ण के जन्म लेते ही फैल गया दिव्य प्रकाश (Divine light spread as soon as Shri Krishna was born)
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात 12 बजे जब भगवान विष्णु ने कृष्ण रूप में जन्म लिया, तो चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया और उसी समय आकाशवाणी से एक आवाज आई कि शिशु को गोकुल में नंद बाबा के घर ले जाओ। वासुदेव ने जैसे ही बालक को उठाया, उनकी बेड़ियां खुल गईं। सारे पहरेदार सो गए और जेल के सात दरवाजे अपने आप खुल गए।
वासुदेव ने ब्रज जाकर श्री कृष्ण को नंद गोप की सोई हुई पत्नी यशोदा के पास रखा और उनकी नवजात बेटी को अपने साथ वापस जेल में ले आए। वासुदेव के अंदर आते ही सारे दरवाजे अपने आप बंद हो गए, बेड़ियां फिर से पैरों पर गिर पड़ीं और पहरेदार जाग गए। जैसे ही कंस ने आठवीं संतान का समाचार सुना तो वह कारागार पहुंच गया। जैसे ही उसने देवकी की गोद से कन्या को छीन कर उसे मारने के लिए उठाया, वह भागकर आकाश में उड़ गई और कन्या ने कहा, दुष्ट कंस, जो तेरी मृत्यु का कारन बनेगा, वह पहले ही पैदा हो चुका है।
नाना उग्रसेन को सिंहासन दिलवाया
उन्हें पता चला कि कृष्ण गोकुल में नंद गोपा के साथ रह रहे थे। उसने उसे मारने के कई प्रयास किए, लेकिन सब व्यर्थ। बड़े होने पर कृष्ण ने कंस का वध किया और लोगों को भय और आतंक से मुक्त किया। उसने अपने माता-पिता को जेल से छुड़ाया और अपने नाना उग्रसेन को फिर से सिंहासन पर बिठाया।
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