जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को,
मिल जाए तरुवर की छाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है,
मैं जबसे शरण तेरी आया…मेरे राम ।
भटका हुआ मेरा मन था कोई,
मिल न रहा था सहारा,
लहरों से लड़ती हुयी नाव को,
जैसे मिल ना रहा हो किनारा,
मिल न रहा हो किनारा ।
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो,
किसी ने किनारा दिखाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है,
मैं जबसे शरण तेरी आया…मेरे राम ।
जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को,
मिल जाए तरुवर की छाया…
शीतल बने आग चंदन के जैसी,
राघव कृपा हो जो तेरी,
उजियाली पूनम की हो जाए राते,
जो थी अमावस अंधेरी,
जो थी अमावस अंधेरी ।
युग युग से प्यासी मरुभूमि ने,
जैसे सावन का संदेस पाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है,
मैं जबसे शरण तेरी आया…मेरे राम ।
जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को,
मिल जाए तरुवर की छाया…
जिस राह की मंज़िल तेरा मिलान हो,
उस पर कदम मैं बढ़ाऊ,
फूलों में खरो में पतझड़ बहारों में,
मैं न कभी डगमगाउ ।
पानी के प्यासे को तक़दीर ने,
जैसे जी भर के अमृत पिलाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है,
मैं जबसे शरण तेरी आया…मेरे राम ।
जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को,
मिल जाए तरुवर की छाया…
Singer - Sonu Nigam