माँ - Navdeep Kaur


तर्ज- भोर भये पनघट पे
माँ हरेक संकट से ,बच्चों के प्राण बचाये
कोई मन से  जो उन को पुकारे,वो ममता अपनी लुटाये लुटाये 
माँ..
कभी  चली, जो  अकेली मैं तो ,बनी तू सहेली
मैया रानी तू कल्याणी ,रखती  सब पर, निगरानी
छतरी उठाए ग़मे धूप से ,हमको बचाए माई 
माँ हरेक संकट से........................ 
पायें करम जो थोड़ा, खिले, अंग अंग मोरा 
रह न पाऊँ निज घर पे ,दौड़ी  आऊँ तेरे दर पे
तुझको ही ध्याके तेरे रूप को, नैन बसाए माई 
माँ हरेक संकट से.......................... 
भटके जो तू डगर दे ,पँख, पापों के कतर के 
मेहरा वाली जोता वाली ,हे भवानी शेरावाली 
जो तुझे भाये ,उसे कोई भी, आंच न आए माई 
माँ हरेक संकट से............................. 

Singer - Navdeep Kaur