भारत के सबसे प्रसिद्ध महालक्ष्मी के मंदिरों में सबसे पहला नाम आता है कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर का। लोगो की विशेष आस्था है इस मंदिर पर, हर साल लाखों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त इस मंदिर में आता है, माता उसके दिल की बात सुनकर उसकी हर मनोकामना पूरी करती है।
मंदिर का इतिहास
मंदिर का मुख्य परिसर
इस मंदिर का निर्माण चालुक्य के साम्राज्य के समय का अथवा 1800 वर्ष प्राचीन माना जाता है। तथ्यों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंश के राजा कर्णदेव ने करवाया था और इसके अंदर प्रतिष्ठित मूर्ति 7000 वर्ष पुराणी मानी जाती है। कहा जाता है कि मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। मंदिर के अंदर नवग्रहों सहित कई अन्य भगवानों की मूर्तियां भी स्थापित हैं, जैसे - भगवान सूर्य, महिषासुर मर्दिनी, बिट्ठल रखमाई, शंकर, विष्णु आदि। अक्षय तृतीया पर यह माता के दर्शनों के लिए यहां सबसे ज़्यादा भीड़ उमड़ती है।
मंदिर की पौराणिक कथा
इस मंदिर में देवी लक्ष्मी को 'अम्बा बाई' के नाम से पूजा जाता है। इस प्राचीन मंदिर से जुडी पौराणिक कथा इस प्रकार है कि एक बार ऋषि भृगु के मन में विचार आया कि त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ कौन है? इसका उत्तर जानने के लिए उन्होंने तीनों देवों के पास जाने का मन बनाया। सर्वप्रथम वे पहुंचे ब्रह्मा जी के पास, और उनसे क्रोध में बात करने लगे। ऋषि को ऐसे उदंडता करता हुआ देख ब्रह्मा जी को भी क्रोध आ गया। उन्हें क्रोधित देख ऋषि समझ गए कि ब्रह्मा जी अपना क्रोध नियंत्रित नहीं कर सकते, और उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया कि उनकी पूजा किसी भी मंदिर में नहीं होगी। इसके पश्चात वे गए कैलाश, शिव शंकर के दर्शन के लिए। किन्तु द्वार पर ही नंदी द्वारा रोक लिए गए, नंदी ने उन्हें बतलाया की शिव और देवी पार्वती एकांत में हैं। अतः कोई उनसे नहीं मिल सकता, इतना सुनते ही ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होंने शिव को श्राप दिया कि उनकी पूजा लिंग के रूप में होगी।
अंत में वे पहुंचे बैकुंठ, वहां पहुंचते ही वो देखते हैं की भगवान विष्णु शेषनाग पर आँखे बंद कर के विश्राम कर रहे हैं और देवी लक्ष्मी उनके चरण दबा रहीं हैं। यह देखकर वे फिर से क्रोधित हो गए और उन्होंने विष्णु की छाती पर ज़ोर से एक लात मारी। इससे भगवान् विष्णु जाग गए और उन्होंने ऋषि के पाँव पकड़ लिए और पूछा कही आपको चोट तो नहीं लगी? यह सुनकर ऋषि भृगु का क्रोध एकदम शांत हो गया और वे विष्णु की प्रशंसा करते हुए वहां से चले गए।
किन्तु यह सब देखकर देवी लक्ष्मी क्रोधित हो गयीं, उन्हें ऋषि का यह व्यव्हार अच्छा नहीं लगा और न ही वे अपने पति का अपमान सहन कर सकीं। उन्होंने विष्णु से कहा की आपने उन्हें दंड देना चाहिए, किन्तु विष्णु उन्हें शांत होने के लिए कहने लगे। किन्तु माता लक्ष्मी ने उनकी बात न मान कर बैकुंठ धाम का त्याग कर दिया और पृथ्वी पर आ गयीं। जहाँ वे पृथ्वी पर अवतरित हुई, वह जगह ही कोल्हापुर नाम से जानी जाती है। देवी को मनाने के लिए भगवान विष्णु भी धरती पर वेंकटेश्वर के रूप में अवतरित हुए। जिनका मंदिर तिरुपति बालाजी नाम से जगत प्रसिद्द है।
मंदिर की विशेषता
मंदिर की मुख्य प्रतिमा
इस मंदिर में माता लक्ष्मी की भव्य प्रतिमा काले रंग की है, जिसकी ऊंचाई 3 फ़ीट है। मंदिर के भीतर ही एक दिवार में श्री यंत्र खुदा हुआ है। मूर्ति के चारों हाथों में अस्त्र शास्त्र हैं- निचले दाहिने हाथ में निम्बू फल, तथा बाएं हाथ में कटोरा, ऊपरी बाएं हाथ में गदा है जिसका सिर ज़मीन को छूता हुआ है तथा दाएं हाथ में ढाल है। देवी की प्रतिमा के पीछे उनके वाहन शेर की भी प्रतिमा पत्थर द्वारा तैयार की गयी है तथा उनके मुकुट में शेषनाग का चित्र भी उकेरा गया है।
यहाँ पर एक और विशेष बात है, अन्य हिन्दू धार्मिक स्थलों पर देवी देवताओं का मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर होता है। किन्तु यहाँ देवी महालक्ष्मी पश्चिमी दिशा का निरक्षण करते हुए स्थापित हैं। मंदिर में एक छोटी सी खिड़की भी है जो हमेशा खुली रहती है, इसके माध्यम से सूरज की किरणें हर वर्ष मार्च और सितम्बर के महीने में तीन दिनों के लिए देवीजी के मुख मंडल को रोशन करते हैं और इनके चरण कमल में समा जाते हैं।
दर्शन का प्रारूप
मंदिर में प्रतिदिन निम्न मुख्य सेवाएं भगवान् को दी जातीं हैं :
पहली सेवा सुबह प्रातःकाल 4:30 बजे शुरू होती है, जिसमे पुजारी दिया जलाते हैं और सभी भक्तजन आरती भजन गाते हुए भगवान को जगाते हैं। इसे काकड़ आरती कहा जाता है।
इसके बाद 08:00 बजे दूसरी पूजा शुरू होती है, जिसमे महालक्ष्मी जी की मूर्ति का अभिषेक किया जाता है और पुष्प चढ़ाए जाते हैं।
तीसरी पूजा में सुबह 9:30 बजे अभिषेक के पश्चात् माता को भोग चढ़ाया जाता है, इसे नैवैद्य भी कहा जाता है।
दोपहर 11:30 बजे महापूजा की जाती है। देवी माँ को महानैवेद्य ( चावल, सब्जियाँ, दाल, चटनी और पूरन पोली आदि) का भोग लगाया जाता है।
इसके बाद 1:30 बजे अलंकार पूजा होती है, जिसमे माता को स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित किया जाता है।
सायं 8 बजे धूप आरती की जाती है, जिसमे शंख गणतियों के साथ माता की आरती गाई जाती है।
और अंत में रात्रि 10 बजे सेज आरती की जाती है, जिसमे भगवान को सुलाया जाता है।
माता के मंदिर में नवरात्री, दिवाली तथा जन्माष्टमी बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है। नवरात्री में नौ दिन माता का प्रातः 08:00 बजे से 11:00 बजे तक अभिषेक किया जाता है। और अक्षय तृतीया पर भी यहां बहुत भीड़ उमड़ती है, इस दिन माता का दर्शन अत्यंत शुभ माना जाता है।
कैसे पहुंचे?
रोड द्वारा
पुणे-बैंगलोर एनएच 4 कोल्हापुर के सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यह स्थान राज्य के भीतर और अन्य राज्यों के साथ-साथ विभिन्न स्थलों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसमें कर्नाटक और गोवा के साथ-साथ तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्र भी शामिल हैं। राज्य परिवहन बस नियमित रूप से इस शहर से मुंबई (379) और पुणे (225 किमी) तक चलती है।
कोल्हापुर पहुंचने के बाद, महालक्ष्मी मंदिर तक पहुंचने के लिए कोई टैक्सी या रिक्शा ले सकता है। महाराष्ट्र के इस हिस्से में सड़कों को नियमित रूप से ठीक रखा जाता है ताकि यात्रियों की यात्रा की सुरक्षा सुनिश्चित रहे।
ट्रेन द्वारा
महालक्ष्मी मंदिर की उपस्थिति होने के कारण यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, इसीलिए कोल्हापुर का अपना रेलवे स्टेशन है। छत्रपति एस महाराज रेलवे स्टेशन में पुणे (महाराष्ट्र एक्सप्रेस) और मुंबई (महालक्ष्मी एक्सप्रेस) सहित भारत के विभिन्न शहरों से आने वाली ट्रेनें हैं। कोई भी बैंगलोर (रानीचेन्नमा एक्सप्रेस), अहमदाबाद (अहमदाबाद एक्सप्रेस) और तिरुपति से यात्रा कर सकता है। इसके अलावा, दिल्ली जैसे अन्य प्रमुख स्थलों में भी सीधी ट्रेन कोल्हापुर के लिए निजामुद्दीन एक्सप्रेस के माध्यम से उपलब्ध हैं।
हवाईजहाज द्वारा
कोल्हापुर में उज्लेवड़ी में एक घरेलू हवाई अड्डा है जो इस शहर के केंद्रीय क्षेत्र से 13 किमी दूर स्थित है। कई उड़ानें इसे देश के अन्य प्रमुख स्थलों से जोड़ती हैं। उदाहरण के लिए, मुंबई से पहुंचने के लिए शहर से दैनिक विमान उपलब्ध हैं, यात्रा पूरी होने में सिर्फ एक घंटा लगता है।
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