महाशिवरात्रि (Mahashivratri) - The Lekh


महाशिवरात्रि

🔴 Live MahaShivratri Darshan - Shree Somnath Temple, First Jyotirlinga  -01-March-2022 - YouTube

महाशिवरात्रि भारतीयों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। माघ फागुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव व पत्नी पार्वती की पूजा होती हैं। यह पूजा वृत रखने के दौरान की जाती है। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है|भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है|

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कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में 'हेराथ' या 'हेरथ' भी कहा जाता हैं।

कथाएँ

महाशिवरात्रि से सम्बन्धित कई पौराणिक कथाएँ है:

समुद्र मन्थन

समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित था, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्माण्ड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कण्ठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित हो उठे थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव 'नीलकंठ' के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान शिव के चिन्तन में एक सतर्कता रखी। शिव का आनन्द लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है।

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शिकारी कथा

एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिन्ता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे शिकारी हँसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरन्त लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलम्ब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊँगा।

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किन्तु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवम् सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवम् दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।

अनुष्ठान

 

 

गेंदे के फूलों की अनेक प्रकार की मालायें जो शिव को चढ़ाई जाती हैं।

इस अवसर पर भगवान शिव का अभिषेक अनेकों प्रकार से किया जाता है। जलाभिषेक : जल से और दुग्‍धाभिषेक : दूध से। बहुत जल्दी सुबह-सुबह भगवान शिव के मन्दिरों पर भक्तों, जवान और बूढ़ों का ताँता लग जाता है वे सभी पारम्परिक शिवलिंग पूजा करने के लिए जाते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं। भक्त सूर्योदय के समय पवित्र स्थानों पर स्नान करते हैं जैसे गंगा, या (खजुराहो के शिव सागर में) या किसी अन्य पवित्र जल स्रोत में। यह शुद्धि के अनुष्ठान हैं, जो सभी हिन्दू त्योहारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पवित्र स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहने जाते हैं, भक्त शिवलिंग स्नान करने के लिए मन्दिर में पानी का बर्तन ले जाते हैं महिलाओं और पुरुषों दोनों सूर्य, विष्णु और शिव की प्रार्थना करते हैं मन्दिरों में घण्टी और "शंकर जी की जय" ध्वनि गूँजती है। भक्त शिवलिंग की तीन या सात बार परिक्रमा करते हैं और फिर शिवलिंग पर पानी या दूध भी डालते हैं। हलाकि इन सभी अनुष्ठान का वर्णन हमारे पवित्र शास्त्रों में कहीं पर भी नही है, जिससे यह शास्त्रानुकूल साधना नही है।

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शिव पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि पूजा में छह वस्तुओं को अवश्य शामिल करना चाहिए:

  • शिव लिंग का पानी, दूध और शहद के साथ अभिषेक। बेर या बेल के पत्ते जो आत्मा की शुद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं;
  • सिंदूर का पेस्ट स्नान के बाद शिव लिंग को लगाया जाता है। यह पुण्य का प्रतिनिधित्व करता है;
  • फल, जो दीर्घायु और इच्छाओं की सन्तुष्टि को दर्शाते हैं;
  • जलती धूप, धन, उपज (अनाज);
  • दीपक जो ज्ञान की प्राप्ति के लिए अनुकूल है;
  • और पान के पत्ते जो सांसारिक सुखों के साथ सन्तोष अंकन करते हैं।

अभिषेक में निम्न वस्तुओं का प्रयोग नहीं किया जाता है:

  • तुलसी के पत्ते
  • हल्दी
  • चंपा और केतकी के फूल

Mahashivratri

Mahashivratri is a major festival of Indians. This is the main festival of Lord Shiva. Mahashivratri festival is celebrated on Magh Phagun Krishna Paksha Chaturdashi. It is believed that the creation started from this day. According to mythology, the creation started on this day with the rise of Agnilinga (which is the giant form of Mahadev). Lord Shiva was married to Goddess Parvati on this day. Lord Shiva and his wife Parvati are worshiped on the day of Mahashivaratri. This worship is done while keeping the fast. Mahashivratri is considered the most important of the 12 Shivratris that occur in a year. The holy festival of Mahashivratri is celebrated with great enthusiasm all over the world including India.

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In Kashmir Shaivism, this festival is also called Har-Ratri and colloquially 'Herath' or 'Herath'.

Stories

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There are many mythological stories related to Mahashivratri:

Ocean Churning


The churning of the ocean was sure to produce the immortal nectar, but along with it a poison called Halahal was also produced. Halahal poison had the potential to destroy the universe and hence only Lord Shiva could destroy it. Lord Shiva had kept the poison named Halahal in his throat. The poison was so powerful that Lord Shiva woke up in great pain and his throat turned very blue. For this reason Lord Shiva is famous by the name of 'Neelkanth'. For the treatment, the physicians advised the deities to keep Lord Shiva awake throughout the night. Thus, keeping a vigilance in the contemplation of Lord Shiva. To enjoy and wake up Shiva, the deities performed different dances and played music. As morning broke, Lord Shiva, pleased with their devotion, blessed them all. Shivratri is the celebration of this event, whereby Shiva saved the world. Since then on this day, devotees observe fast.

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Hunter Tale

Once Parvati ji asked Lord Shivshankar, 'Which is such a best and simple fast-worship, by which the creatures of the land of death can easily receive your blessings?' In reply, Shivji narrated this story to Parvati by telling the method of 'Shivratri' fast - 'Once upon a time there was a hunter named Chitrabhanu. He used to feed his family by killing animals. He was indebted to a moneylender, but could not repay his loan in time. The angry moneylender imprisoned the hunter in Shivmath. Coincidentally that day was Shivratri.'

The hunter kept on listening to the religious talk related to Shiva while being meditative. He also heard the story of Shivratri fast on Chaturdashi. As soon as evening came, the moneylender called him to him and talked about repaying the loan. The hunter was released from bondage by promising to return all the debt the next day. As per his routine, he went out for hunting in the forest. But due to being in the prison house all day, he was distraught with hunger and thirst. For hunting, he started making a camp on a vine-tree on the bank of a pond. There was a Shivling under the Bael tree which was covered with leaves. Hunter could not find the person

The twigs he broke while making the camp accidentally fell on the Shivling. In this way, the fasting of the hungry and thirsty hunter was done for the whole day and Bel leaves were also put on the Shivling. After one o'clock in the night, a pregnant epilepsy reached the pond to drink water. As soon as the hunter put an arrow on the bow and pulled the string, the deer said, ' I am pregnant. Will give birth soon. You will be killing two souls at the same time, which is not right. I will appear before you soon after giving birth to the child, then kill me.' The hunter loosened the noose and the antelope disappeared into the wild bushes.

After some time, another epilepsy came out from there. The hunter was on cloud nine After coming close, he put the bow on the arrow. Then seeing him the epilepsy humbly requested, 'O Pardhi! I have retired from the season a while back. I am a sensual virgin. I am wandering in search of my beloved. I will come to you soon after meeting my husband.' The hunter let him go as well He was perturbed over losing his prey twice. He got worried. It was the last hour of the night. Then another epilepsy came out from there with her children. It was a golden opportunity for the hunter. He did not take long to put an arrow on the bow. He was about to release the arrow when the epilepsy said, 'O Pardhi!' I will return after handing these children over to their father. At this time the hunter laughed at me and said, leave the prey in front of me, I am not such a fool. I have lost my prey twice before. My children must be suffering from hunger and thirst. In reply Mrigi again said, just as the love of your children is troubling you, so am I. That's why I am asking for life for a while only in the name of children. Hey Pardhi! Trust me, I promise to leave them with their father and return immediately.

Hearing the humble voice of the epilepsy, the hunter felt pity on him. He let that chicken escape too In the absence of prey, the hunter sitting on the vine-tree was breaking the leaves and throwing them down. When the dawn was about to break, a strong antelope came on the same way. The hunter thought that he would definitely hunt it. Seeing the trunk of the hunter, the antelope said in a melodious voice, O Pardhi brother! If you have killed three epilepsy and small children coming before me, then do not delay in killing me too, so that I do not have to suffer even for a moment in their separation. I am the husband of those epilepsy. If you have given them life, then please give me a few moments of life too. I will appear before you after meeting him.

On listening to the antelope, the whole night's events revolved in front of the hunter, he told the whole story to the antelope. Then the deer said, 'The way my three wives have gone with a vow, they will not be able to follow their religion after my death. Therefore, just as you have left him as a confidant, let me go as well. I will appear before you soon with all of them.' The hunter's violent heart was purified by fasting, night-waking and offering beltpatra on Shivling. Bhagavad Shakti had resided in him. The bow and arrow easily fell out of his hands. His violent heart was filled with compassionate feelings by the grace of Lord Shiva. Remembering his past deeds, he started burning in the flame of repentance.

After a while, the deer appeared in front of the hunter with his family, so that he could hunt them, but seeing such truthfulness, truthfulness and collective love of wild animals, the hunter felt very guilty. There was a flood of tears from his eyes. By not killing that deer family, the hunter removed his hard heart from animal violence and made it soft and kind forever. The entire Dev Samaj was also watching this incident from Devlok. As soon as the event was over, the deities showered flowers. Then the hunter and the deer family attained salvation.

Rituals

On this occasion, anointing of Lord Shiva is done in many ways. Jalabhishek: With water and Dugdhabhishek: With milk. Very early in the morning, the temples of Lord Shiva are thronged by devotees, young and old, who all go to perform the traditional Shivling worship and offer prayers to the Lord. Devotees bathe at sunrise at holy places such as the Ganges, or (in the Shiva Sagar of Khajuraho) or any other holy water source. These are rituals of purification, which are an important part of all Hindu festivals. Clean clothes are put on after a holy bath, devotees carry a pot of water to the temple to bathe the Shivalinga, both women and men pray to Surya, Vishnu and Shiva. Temples ring bells and "Shankar ji ki jai" sounds. . Devotees circumambulate the Shivling three or seven times and then also pour water or milk on the Shivling. However, all these rituals are not described anywhere in our holy scriptures, due to which it is not a scripture-based practice.

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According to the Shiva Purana, six items must be included in the Mahashivaratri Puja:

  • Abhishekam of Shiva Linga with water, milk and honey. ber or bel leaves which represent the purification of the soul;
  • Vermilion paste is applied to the Shiva Linga after bath. It represents virtue;
  • fruits, which represent longevity and the satisfaction of desires;
  • burning incense, wealth, yield (grains);
  • the lamp which is conducive to the attainment of knowledge;
  • and betel leaves that mark contentment with worldly pleasures.

The following items are not used in Abhishek:

  • basil leaves
  • Turmeric
  • Champa and Ketki flowers

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Singer - The Lekh