नाग पंचमी की कहानी | Naag Panchami Vrat Katha(Kahani). - Bhajan Sangrah


नाग पंचमी की प्रसिद कथा:

 

श्रावण कृष्ण पंचमी को नाग पंचमी कहते हैं कहीं-कहीं पर यह त्योहार श्रावण शुक्ला पंचमी को मनाया जाता

है। नाग पंचमी हिंदुओं का पावन पर्व है। इस दिन महिलाएं नाग देवता की पूजा करती हैं और नाग देवता को भोग

लगाती हैं। ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग है अतः नाग पंचमी के दिन आटे में हल्दी मिलाकर

नाग बनाए और उस नाग का पूजन करना चाहिए।

 

सुगंधित पुष्प तथा दूध सर्पों को प्रिय होता है इसलिए यह वस्तुएं अर्पित करें और व्रत के दिन नाग पंचमी की

कहानी सुननी चाहिए। नाग पंचमी को प्रसाद के रूप में भुने हुए जौ और भुने हुए चने वितरित किए जाते हैं। इस

दिन नाग पंचमी की कहानी या नाग पंचमी व्रत कथा सुनने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है तो आइए जानते हैं

नाग पंचमी की कहानी (नाग पंचमी की कथा) :

 

नाग पंचमी की कहानी – एक नगर में एक सेठ जी रहते थे उनके सात बेटे और सात बहुऐ थी। इन सातों बहुओं

में से छः बहुओं के तो पीहर थे लेकिन सातवीं बहू के पीहर नहीं था। जब है गर्भवती हुई तो उसे घेवर खाने की

इच्छा हो रही थी उसके पीहर नहीं था तो उसने एक घेवर चुराकर पानी भरने गई तब ले गई। वहां जाकर पेड़ के

नीचे घेवर रख दिया और सोचा कि पानी भर कर आराम से घेवर खा लूंगी।

 

जब वह पानी भरकर घेवर लेने गई तो वहां घेवर नहीं मिला। उस पेड़ के पास एक बांबी थी उसमें एक नागिन

रहती थी वह नागिन भी उस समय गर्भवती थी। घेवर को देखकर नागिन की इच्छा उसे खाने की हुई और उसने

घेवर खा लिया। उस नागिनी ने सोचा कि यदि साहूकार की बहू मुझे गाली देगी तो मैं उसे डस लूंगी और यदि कुछ

नहीं कहेगी तो इस बिना पीहर(मायका)की को पीहर दिखा दूंगी।

 

साहूकार के बेटे की बहू ने कहा कि शायद कोई मेरी जैसी ही होगी जिसने यह घेवर खा लिया ऐसा सुनकर नागिन

बहुत खुश हुई और उसने अपने बेटों से कहा कि तुम इंसान का रूप बनाकर जाओ और साहूकार के बेटे की बहू

को लेकर आओ। नागिन के बच्चे इंसान का रूप बनाकर साहूकार के घर चले गए।

 

वहां जाकर उन्होंने कहा कि हम हमारी बहन को लेने के लिए आए हैं तब सास ने कहा कि पहले तो कभी नहीं

आए। इतने दिन कहां थे तब उन्होंने कहा कि जब हमारी बहन का जन्म हुआ तब हम नानी के घर थे और शादी

हुई तब हम परदेश कमाने के लिए गए हुए थे। उन लड़कों ने बहुत सारे कपड़े गहने और मिठाइयां बहन के सास

और जेठानीयो के लिए ले गए थे सास अत्यंत प्रसन्न थी और जेठानीया उसे देखकर जल कूढ रही थी।

 

सास ने बहू को उनके साथ में भेज दिया बॉंबी के पास जाकर उन्होंने कहा – बहन हम नाग हैं उस दिन जब तुमने

पेड़ के नीचे घेवर रखा था तब तुम्हारा घेवर हमारी मां ने ही खाया था उन्होंने तुम्हें अपनी बेटी माना है इस नाते से

तुम हमारी बहन हुई। बहन अब तुम हमारी पूँछ को पकड़ लो और डरना मत। उनके कहने पर वह पूँछ

पकड़कर बॉंबी में चली गई वहां पर उन्होंने उसे बहुत लाड प्यार और सुख से रखा।

 

वहीं पर उसने एक लड़के को जन्म दिया जब उसका लड़का थोड़ा बड़ा हुआ तब की बात है पड़ोसन ने साहूकार

के बेटे की बहू को सिखा दिया अगर तू तेरी मां की इतनी ही लाडली है तो तू तेरी मां से कहना कि आज तो नागो

को दूध में ही पिलाऊंगी। पड़ोसन का ताना उसे सहन नहीं हुआ वह मां से जिद करके नागों का दूध ठंडा करने

लगी।

 

अभी तक दूध ठंडा नहीं हुआ था उससे पहले ही उसके बेटे ने घंटी बजा दी घंटी की आवाज सुनकर छोटे बड़े

सारे नाग दूध पीने के लिए दौड़ पड़े जब उन्होंने दूध में मुंह लगाया तो बहुतों का मुंह जल गया। तब नाग क्रोधित

होकर बोलने लगे कि हम बहन को काटेंगे उसकी मां ने उन्हें समझाते हुए कहा कि इसे मत काटो यह तुम्हें

आशीष देगी। तब साहूकार के बेटे की बहू ने कहा –

 

जियो म्हारा नाग नागिनी ,जियो म्हारा खड़्या ऑड्या बीर । बीर उठावे देखणीरो चीर, चीर तो फट जाव पण, बीर

जीता रेवे।

 

थोड़े दिन बीत जाने के बाद पड़ोसन ने फिर से ताना मारा कि यदि तेरी मां तुझ पर विश्वास करती तो तुझे सातवे

कोटे की चाबी देती। उसने मां से जिद करके चाबी ले ली और जब ताला खोला तो अंदर झूले में बाबा नाग झूल

रहे थे। उसने बाबा नाग से कहा – सतसिया राम बाबा। उन्होंने कहा कि तूने सत सियाराम कर लिया वरना मैं तुझे

डस लेता।

 

तब उसने कहा कि आप तो मेरे पिता हो मुझे कैसे डस सकते हो। और बोली –

 

जिओ नाग नागिनी, जिओ वासुकी नाग। जीण मेरो लाड लडाया नौ करोड को हार।

 

नाग देवता ने उसको नौ करोड़ का हार दे दिया । माँ ने अपने बेटों से कहा- ” बाई तो अब बड़े घरों में हाथ डालने

लगी है उसे घर पहुँचा दो । ” नागों ने साहूकार के बेटे की बहू को बहुत से गहने कपड़े दिये और ससुराल पहुँचा

दिया । थोड़े दिनों की बात है उसका बच्चा झाडू तोड़ रहा था । ताई ने कहा , ” झाडू मत तोड़ । इतना तोड़ने का

शौक है तो तेरे नाना – मामा के यहां से लाया होता ।

 

सापों ने सुन लिया । माँ से जाकर कहा । माँ ने कहा ” दो झाडू सोने की बनवाओ , दो चाँदी की बनवाओ और दे

आओ । ” ताईयाँ देखकर जल गई । कहने लगी , ” इसके तो ताने मारने से धन बढ़ता है । कुछ दिनों के बाद की

बात है बच्चा । गेहूँ बिखेर रहा था । ताई ने ताना मारा , ” गेहूँ बिखेरने का शौक है तो नाना – मामा से ले आता

हमारे यहाँ तो मत विखेर । ” सापों ने सुन लिया । जाकर माँ से कहा।

 

माँ ने कहा दो बोरी दाने सोने के घड़ाओ , दो बोरी दाने चांदी के घड़ाओ और दे आओ । ” ताईयां और जल गई

कहने लगी- ” इसे ताने मत मारो , इसका धन बढ़ता है । ” छोटी जिठानी लकड़ी लेने गई वहां सांप था उसने

सोचा सबसे छोटी को भेजना चाहिए । सांप उसे खा जायेगा तो मुसीबत मिट जायेगी ।

 

छोटी बहू लकड़ी लेने गई तो वहां सांप बैठा था बोली , ” भैया राम राम । ” साँप ने झट से बिछुए दे दिए । पहन

कर छम – छम करती चली आई । जिठानियाँ देखकर जल गईं । दो – चार दिन बाद पान की गड्डियों में एक साँप

देखा तो बड़ी जिठानी ने सबसे छोटी को पान लेने भेजा । उसने सोचा आज अवश्य साँप काट लेगा । साँप को

देखकर छोटी बोली- ” भैया घर के क्या हाल चाल हैं ? घर में सब ठीक तो हैं ।

 

सबको मेरा राम – राम कहना । ” सांप ने मून्दड़ी पहना दी । जिठानियाँ फिर जल – कुढ़ गईं । उसका पति

दुकान से आया तब सिखा दिया कि तेरी बहू के तो सांप बिच्छू से दोस्ती हैं । साहूकार का बेटा अपनी बहू से रात

को कहने लगा- ” ” सच – सच बता साँप बिच्छू तेरे क्या लगते हैं , जो तुझे काट खाने के बजाय गहने देते हैं ? ”

बहू ने कहा- ” वो तो मेरे भाई – भतीजे लगते हैं।

 

फिर उसने सारी बात अपने पति को बताई । पति ने कहा- ” तो क्या तेरे भाई – भतीजे तुम्हें ही बुलाते हैं । कभी

अपने जंवाई को यानि हमें तो बुलाते नहीं हैं । ” आने – कोने में छुपे सांपों ने बात सुन ली तो जाकर अपनी माँ से

कहा। माँ ने कहा- ” दोनों को बुला लाओ।

 

वे इन्सान का रूप बनाकर दोनों को व बच्चे को बुला लाए । खूब कपड़े,गहने देकर तीनों को विदा किया । ऐसा

समर्थ पीहर नाग पंचमी की कहानी कहने वाले को, नाग पंचमी की कहानी सुनने वाले सबको मिले । जैसी

अनपीहरी वो पहले रही थी किसी को भी न रखें ।

 

यह थी नाग पंचमी की कहानी हम आशा करते हैं कि आपको नाग पंचमी की कहानी (नाग पंचमी व्रत कथा)

पसंद आई होगी धन्यवाद।

Singer - Bhajan Sangrah

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