धार्मिक कथाओं के अनुसार , भद्रावती राज्य में एक राजा था जिसका नाम सुकेतुमान था उसकी पति थी जिसका नाम शैव्या था! राजा के पास हर सुख था किसी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन उसके पास कोई संतान नहीं थी जिसकी वजह से राजा और रानी दोनों ही हमेशा उदास और चिंतित रहा करते थे राजा को यह चिंता भी सताती थी कि उसकी मृत्यु के बाद उसका पिंडदान कौन करेगा ! राजा इतना दुखी हो गया की उसने एक दिन अपने प्राण लेने का मन बना लिया ! लेकिन उसे पाप का डर था इस लिए उसने यह विचार त्याग दिया ! राजा का मन राजपाट में नहीं लग रहा था ऐसे में वो जंगल की ओर चला गया राजा को जंगल में कई पक्षी और जानवर दिखाई दिए इन्हे देख कर राजा के मन में बहुत से बुरे विचार आने लगे राजा काफी दुखी हो गया और एक तालाब के किनारे बैठ गया ! वहाँ पर कई ऋषि मुनियों का आश्रम बना हुआ था! राजा आश्रम में गया और ऋषि मुनि राजा को देखकर प्रसन्न हुए ऋषि मुनियो ने कहा आप अपनी इच्छा बतायें राजा ने अपनी परेशानियों के वजह ऋषि मुनियों से कही राजा की चिंता सुनकर मुनियो ने कहा की उन्हें संतान प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना होगा राजा ने इस व्रत का पालन किया और द्वादसी को इसका विधि विधान से पारण किया ! इस व्रत के फल स्वरुप रानी ने कुछ समय बाद गर्भ धारण किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई!
विधि:
सुबह स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें इसके बाद पूजा स्थल पर पूजा आरंभ करें पूजा आरंभ करने से पूर्व व्रत का संकल्प ले इस दिन विष्णु जी का पाठ करना अत्यंत सुबह माना गया है इस दिन व्रत के नियमो का कठोरता से पालन करें इस दिन अन और चावल का सेवन बिलकुल भी ना करें एकादशी व्रत में शाम की भी पूजा महत्वपपूर्ण मानी गई है इस दिन शाम को विधि पूर्वक भगवान विष्णु जी की पूजा व आरती करनी चाहिए व्रत पारण करने के बाद जरूरत मंद लोगो को दान देना चाहिए !
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