सावन का पूरा महीना यू तो भगवान शिव को अर्पित होता ही है पर सावन के पहले सोमवार को शिव की पूजा करने का विशेष फल मिलता है। शिवलिंगों पर इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। आदिकाल से ही इस दिन का विशेष महत्व रहा है। कहा जाता है सावन के सोमवार का व्रत करने से मनचाहा जीवनसाथी मिलता है ओर दूध की धार के साथ भगवान शिव से जो मांगो वह वर मिल जाता है। साथ ही हर मनोकामना पूरी होती है।
सावन के पहले सोमवार की पूजा विधि- प्रातः और सांयकाल स्नान के बाद शिव के साथ माता पार्वती, गणेश जी, और नंदी जी की पूजा करें। चतुर्थी तिथि होने से श्री गणेश की भी विशेष पूजा करें। पूजा में मुख पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर रखें। पूजा के दौरान 108 बार शिव का मूल मंत्र ऊँ नमः शिवाय का जाप करें। पूजा में शिव परिवार को पंचामृत यानी दूध, दही, शहद, शक्कर, घी, व जलधारा से स्नान कराकर, गंध, चंदन, फूल, रोली, वस्त्र अर्पित करें। शिव को सफेद फूल, बिल्वपत्र, सफेद वस्त्र और श्री गणेश को सिंदूर, दूर्वा, गुड़ व पीले वस्त्र चढ़ाएं। शिव को सफेद रंगों के पकवानों और गणेश को मोदक यानी लड्डूओं का भोग लगाएं। भगवान शिव व गणेश के जिन स्त्रोत्रों, मंत्र और स्तुति की जानकारी हो, उसका पाठ करें, श्री गणेश व शिव की आरती सुंगधित धूप, घी के पांच बत्तियों के दीप और कपूर से करें। अंत में गणेश और शिव से घर परिवार की सुख- समृद्धि की कामनाएं करें।
सावन के सोमवार के व्रत की कथा- एक कथा के अनुसार जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने सावन के एक महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया। यही कारण है कि सावन महीने में सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए कुंवारी लड़कियाँ व्रत रखती हैं।
जो भी कन्या इस व्रत को विधि-पूर्वक करती हैं। भगवान शिव उसे मनवांछित व योग्य वर देते है जो भी पुरूष इस व्रत को करता है उसकी सभी मनोकामना पूरी हो जाती हैं।
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