त्र्यंबकेश्वर मंदिर - Traditional


त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रसिद्द ज्योतिर्लिंग है। यह महाराष्ट्र के नासिक जिले तथा ब्रह्मगिरि नामक पर्वत की तलहटी में स्थित है। इसके निकट ही गोदावरी नदी भी बहती है। यहाँ भगवान शिव त्र्यम्बकेश्वर के नाम से जाने जाते हैं। यहना मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे छोटे लिंग स्थित हैं जो ब्रह्मा विष्णु तथा महेश का रूप माने जाते हैं।

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग का इतिहास :-

त्र्यम्बकेश्वर का मंदिर पूर्णतया भगवान शिव को समर्पित है और भारतवर्ष में स्थित बारह ज्योतिर्लिंगीं में से एक है। त्र्यम्बकेश्वर के पास ही गोदावरी नदी का भी उद्गम स्थल है। त्रयम्बकेश्वर में अत्यधिक पानी के उपयोग से यह ज्योतिर्लिग क्षरण होने की कगार में है, कहा जाता है इस ज्योतिर्लिंग का क्षरण मानव समाज के क्षरण का प्रतिनिधित्व करता है।

त्र्यम्बकेश्वर की उपस्थिति पौराणिक काल से ही मानी जाती है, किन्तु इसका पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार का कार्य 1755 में शुरू हुआ था और 1786 में, अर्थात 31 वर्षों में पूर्ण हुआ। यह अत्यंत भव्य मंदिर है और इसको बनाने में आई लागत 16 लाख से ऊपर की थी, जो की आज के समय के अरबों रुपयों के बराबर थी।

मंदिर की विशेषता :-

त्र्यम्बकेश्वर के ज्योतिर्लिंग को एक विशेष मुकुट, जिसे मुग्ध मुकुट कहा जाता है, जो पहले त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महेश को चढ़ाया जाता था, उस से आभूषित किया जाता है। कहा जाता है की यह मुकुट पांडवों के ज़माने से चढ़ाया हुआ है। यह मुकुट कोई साधारण स्वर्ण मुकुट नहीं है, इसमें हीरे, जवाहरात तथा कई कीमती पत्थर जड़े हुए हैं। इस मुकुट को केवल सोमवार के दिन 4 से 5 बजे तक लोगों को दिखाने के लिए रखा जाता है। केदारनाथ की ही भांति यह मंदिर भी पूर्णतया काले पत्थरों से निर्मित है। नासिक शहर से 18 किलोमीटर दूर ब्रह्मगिरि के पर्वत हैं, तथा  त्र्यम्बकेश्वर शहर इसी पर्वत के निचले भाग में बसा हुआ है। ठंडा मौसम होने के कारण यहां की प्राकृतिक सुंदरता भी अपने चरम पर होती है।  समुद्र तल से लगभग 3000 फ़ीट की ऊंचाई पर बसा है। 

गाँव में पहुंचकर कुछ दूर चलने पर ही मंदिर का मुख्य द्वार दिखाई देने लगता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधु और आर्य शैली की कला का एक उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के भीतर बने गर्भगृह में प्रवेश करने पर वहां शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, पूर्ण लिंग नहीं दिखता। इसी आर्घा के भीतर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं, जो की ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश के अवतार माने जाते हैं। प्रातःकाल की पूजा आरती के पश्चात् इस शिवलिंग के ऊपर चांदी का पंचमुखी राजमुकुट रखा जाता है।


मंदिर की मुख्य प्रतिमा
मंदिर की पौराणिक कथा :-

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग के विषय में शिवपुराण में अत्यंत ही रोचक कथा का वर्णन मिलता है। यह कथा इस प्रकार है,-

एक समय महर्षि गौतम अपनी पत्नी सहित एक तपोवन में अन्य ब्राह्मण परिवारों के साथ रहा करते थे। एक दिन अन्य ब्राह्मणों की पत्नियां गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से किसी बात पर नाराज़ हो गयीं। उन सभी ने अपने पतियों से ऋषि गौतम और उनकी पत्नी को उस तपोवन से दूर करने के लिए कहा। उन ब्राह्मणों ने भी अपनी पत्नियों की बातों में आकर गौतम ऋषि का अपकार करने हेतु श्री गणेश की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उन्हें दर्शन दिए और उनसे वरदान मांगने को कहा। सभी ऋषियों ने कहा- यदि आप हम से प्रसन्न हैं तो गौतम ऋषि को इस तपोवन से दूर कर दें। गणपति ने पहले ऋषियों को समझाया की द्वेष से किसी का भला नहीं होता, किन्तु वे ऋषि अपनी बात पर अड़े रहे। गणेश जी को भी भक्तों की बात रखने के लिए उन्हें ऐसा आशीर्वाद देना पड़ा। अपने वरदान को फलीभूत करने के लिए गणपति ने एक दुर्बल गाय का रूप धारण कर लिया और गौतम मुनि के खेत में फसलों को चरने लगे। गाय को फसल नष्ट करता देख गौतम ऋषि ने एक हल्का सा तृण लिया और उसे वहां से हटाने के लिए बड़े हलके से उसे मारा, किन्तु तृण का स्पर्श होते ही वह गाय मर गयी। सभी लोगो में हाहाकार मच गया

सभी लोगो में हाहाकार मच गया, सभी ब्राह्मण एक स्वर में ऋषि गौतम के इस कार्य के लिए उनकी भर्त्सना करने लगे और उन्हें उस तपोवन को छोड़ने के लिए कहने लगे। ऋषि गौतम भी इस गौ-हत्या के पाप से अत्यंत दुखी और आश्चर्य चकित थे। सभी के द्वारा विरोध किये जाने के कारण वे अपनी पत्नी के साथ वहां से दूर रहने लगे। एक दिन गौतम ऋषि ने उस तपोवन के ब्राह्मणों से पुछा की कृपया आप सभी मेरे प्रायश्चित और उद्धार के लिए कोई उपाय बताएं। 

अन्य ऋषियों ने उनको परेशान करने के लिए कहा - "गौतम! तुम अपने इस पाप को सर्वत्र बताते हुए इस धरती की तीन बार परिक्रमा करो। फिर वापस लौट कर एक माह तक व्रत तथा उपवास करो, इसके बाद ब्रह्मगिरि की 101 बार परिक्रमा करने के बाद ही तुम्हारी शुद्धि संभव है। इसके अलावा तुम्हे गंगा जी का जल लाकर उस से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों को गंगा जल से स्नान कराकर शिवजी का पूजन करना होगा और फिर गंगाजी में स्नान कर ब्रह्मगिरि की 11 बार परिक्रमा करनी होगी। इस प्रकार तुम्हारा उद्धार होगा।"

ऋषियों के कथनानुसार महर्षि गौतम ने वे सभी कार्य किये जो ब्राह्मणों ने बताए थे, उनकी आरधना से शिवजी अत्यंत प्रसन्न हुए। और एक दिन शिव जी ने प्रकट होकर गौतम ऋषि से वर मांगने को कहा। महर्षि गौतम ने शिवजी से अपने ऊपर लगे गौ-हत्या के पाप से मुक्त करने के लिए कहा, तो भगवान शिव ने उन्हें बता दिया कि यह सब अन्य ब्राह्मणों की योजना से हुआ है, तुम निष्पाप हो। शिवजी ने छलपूर्वक गौतम ऋषि को कष्ट देने के लिए उन ब्राह्मणों को दंड देना चाहा, किन्तु गौतम ऋषि ने ऐसा करने से उन्हें रोक लिया। गौतम ऋषि ने कहा उन ब्राह्मणों के कारण ही वे शिव जी को प्राप्त कर सके, इसलिए उन्हें क्षमा कर दें।  गौतम ऋषि से शिवजी अत्यंत प्रसन्न हुए, उन्होंने फिर से गौतम ऋषि से वरदान मांगने के लिए कहा। गौतम ऋषि ने कहा की आप सदा यहां निवास करें प्रभु! शिवजीने उनकी बात मान ली तथा वहां त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग के नाम स्थित हो गए। गौतम जी द्वारा लाइ गयी गंगा भी वहां गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगी।


शिवरात्रि में सजा मंदिर 
त्र्यम्बकेश्वर मंदिर दर्शन समय :-

श्री त्र्यंबकेश्वर मंदिर के खुलने का समय 05:30 बजे

दर्शन तथा विशेष पूजन समय 06:00 से 07:00 बजे तक,

प्रथम वेदोक्त उच्चारण (दशपुतरे घराने द्वारा ) 08:00 से 10:30 बजे तक,

मध्यान्ह वेदोक्त उच्चारण (शुक्ला घराने द्वारा ) 12:00 से 12:20 बजे तक,

श्री त्र्यम्बकेश्वर की आरती (तेलंग घराने द्वारा) 08:30 से 09:00 बजे तक

विशेष पूजा सुबह 07:00 बजे, दोपहर 01:00 और शाम 04:30 बजे होती है। विशेष पूजा में रुद्राभिषेक, मृत्युंजय मंत्र और लघु रुद्राभिषेक शामिल हैं। गर्भगृह में 5 मीटर की दूरी से सामान्य दर्शन की अनुमति है।

महीने के हर सोमवार को, एक पालकी में एक जुलूस निकाला जाता है, जिसमे चाँदी का पंचमुखी मुखौटा होता है, यह जुलूस त्र्यंबकेश्वर मंदिर से कुशावर्त टैंक तक और फिर वहां से वापस मंदिर तक लाया जाता है।

कैसे पहुंचे?:-

हवाई मार्ग से :

त्र्यंबकेश्वर का निकटतम हवाई अड्डा महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में स्थित है। यह पवित्र स्थान से लगभग 200 किमी दूर है।

निकटतम हवाई अड्डा: ओझर हवाई अड्डा, नासिक

रेल द्वारा:

त्र्यंबकेश्वर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन नासिक में है। यह स्थान मुंबई के बाद दूसरा प्रमुख रेलवे स्टेशन है। इस प्रकार यह क्षेत्र देश के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग :

त्रयंबकेश्वर महाराष्ट्र सड़क परिवहन निगम की देखरेख में अनेक महत्वपूर्ण बस सेवाओं से जुड़ा हुआ है। यह शहर मुंबई से नासिक तक कई निजी कंपनी वाली डीलक्स बसों से भी जुड़ा हुआ है। यहाँ नासिक (30 किमी), मुंबई (177 किमी) और औरंगाबाद (237 किमी) से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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