एक समय की बात है की एक शहर में एक शिला नाम की स्त्री अपने पति के साथ रहती थीशिला धार्मिक स्वाभाव की थी और भगवान की कृपा से उसे जो भी प्राप्त हुआ था वह उसी मे सन्तोष करती थी शहरी जीवन वह जरूर बयतीत कर रही थी परंतु शहर के जीवन का रंग उस पर नही चढ़ा था भजन कीर्तन भक्ती भाव और परोपकार का भाव उसमे अभी भी था वह अपने पति और अपनी गृहस्थी मे खुश थी आस पड़ोस के लोग भी उस की तारीफ किया करते थे देखते ही देखते समय बदला और उसका पति कुसंगति का शिकार हो गया वह शीघ्र अमीर होने का ख्वाब देखने लगा अधिक से अधिक धन प्राप्त करने के लालच मेवह गलत मार्ग पर चलने लगाजीवन के रास्ते से भटकने के कारण उसकी स्तिथि भिखारी जैसी हो गईबुरे मित्रों के साथ रहने के कारण उसमे शराब जुआ रेस और नशीले प्रदार्थो का सेवन करने की आदत उसे पड़ गईइन गंदी आदतों में उसने अपना सब धन गवा दिया अपने घर और अपने पति की ये स्थिति देखकरशिला बहुत दुखी रहने लगी परन्तु वह भगवान पर भरोसा रखने वाली स्त्री थीसे अपने देव पर पूरा विश्वास था एक दिन दोपहर के समय उसके घर के दरवाजे पर किसी ने आवाज़ दी दरवाजा खोलने पर सामने पड़ोस की माता जी खड़ी थी माता के चेहरे पर एक विशेष तेज था वह करुणा और स्नेह की देवी नजर आ रही थी शिला उस ,माँ जी को घर के अंदर ले आई घर में बैठने के लिए कुछ खास व्यवस्था नहीं थी शिला ने एक फटी हुई चादर पर उसे बैठाया माँ जी बोली क्यों शिला मुझे पहचाना नहीं हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर मेंभजन कीर्तन के समय मै भी वहाँ आती हूँ इसके वाबजूद शिला कुछ समझ नहीं पा रही थी फिर माँ जी बोली तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आई अतः मै तुम्हे देखने चली आई माँ जी के अति प्रेम भरे शब्दो से शिला का हृदय पिघल गया माँ जी के व्यवहार से शिला को काफी सुकून मिला और सुख की आस में उसने माँ जी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई कहानी सुनकर माँ जी ने कहा माँ लक्ष्मी जी तो प्रेम और करुणा की अवतार है वे अपने भक्तो पर हमेशा ममता रखती है इसलिए तू धैर्य रख कर माँ लक्ष्मी जी का व्रत कर इससे सब कुछ ठीक हो जायेगा शिला के पूछने पर माँ जी ने उस व्रत की सारी विधि भी बताई माँ जी ने कहा बेटीमाँ लक्ष्मी जी का यह व्रत बहुत सरल है उसे वैभव लक्ष्मी व्रत कहा जाता है यह व्रत करने वाले की सभी मनोकामना पूर्ण करती है वही सुख सम्पति और यश प्राप्त करता हैशिला यह सुनकर आंनदित हो गई शिला ने संकल्प करके आँखे खोली तो सामने कोई ना था वह विस्मित हो गई की माँ जी कहाँ गई शिला को यह समझते देर ना लगी कि माँ जी और कोई नही साक्षात् लक्ष्मी जी ही थी दूसरे दिन शुक्रवार था सवेने स्नान कर के स्वचछ कपड़े पहन कर शिला ने माँ जी द्वारा बताई विधि से पुरे मन से व्रत किया आखरी में प्रसाद का भोग हुआ यह प्रसाद पहले पति को खिलाया प्रसाद खाते ही पति के स्वाभाव में फ्रक पड़ गया उस दिन उसने शिला को मारा नहीं सताया भी नहीं उनके मन में वैभव लक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा बढ़ गई शिला ने पूरी श्रद्धा भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक वैभव लक्ष्मी व्रत किया इक्कीसवे शुक्रवार को माँ जी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि करके सात स्त्रियों को वैभव लक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दी फिर माता जी के धन लक्ष्मी स्वरुप छवि को वंदन कर के भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी हे माँ धन मैंने आपका वैभव लक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी वह व्रत आज पूर्ण हो गया हे माँ मेरी हर विपत्ति दूर करो हमारा सबका कल्याण करो जिसे संतान ना हो उसे संतान देना सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना कुंवारी लड़की को मन भावन पति देना जो आपका यह चमत्कारी वैभव लक्ष्मी व्रत करे उनकी सब विपत्ति दूर करना सभी को सुखी करना हे माँ आपकी महिमा अपार है ऐसा बोलकर लक्ष्मी जी के धन लक्ष्मी स्वरुप की छवि को प्रणाम किया व्रत के प्रभाव से शिला का पति अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत कर के अपना काम करने लगा उसने तुरंत शिला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए घर में धन की बाढ़ सी आ गई घर में पहले जैसी सुख शांति छा गई वैभव लक्ष्मी व्रत का प्रभाव देख कर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियाँ भी विधि पूर्वक वैभव लक्ष्मी व्रत करने लगी तो आईए भक्तो सुनते हैं वैभव व्रत लक्ष्मी की विधि :
इस व्रत को स्त्री या पुरुष कोई भी कर सकता है इस व्रत को करने से उपासक को धन और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है घर परिवार में लक्ष्मी का वास बनाये रखने के लिए भी यह व्रत उपयोगी है इस दिन स्त्री पुरुष लक्ष्मी की पूजा करते हुए सफ़ेद फूल सफ़ेद चन्दन आदि से पूजा करते हैं खीर से भगवान को भोग लगा कर प्रसाद ग्रहण करते है इस व्रत के दिन उपासक को एक समय भोजन करना चाहिए अगर कोई व्यक्ति माता वैभव लक्ष्मी का व्रत करने के साथ ही लक्ष्मी श्री यंत्र को स्थापित कर उसकी नियमित रूप से पूजा करता है तो उसको व्यापर में वृद्धि और धन में बढ़ोतरी होती है !
Singer - Traditional