खाटू श्याम बाबा की कहानी: कृष्ण भगवान ने दिया था कलियुग में पूजे जाने का वरदान, पढ़ें सम्पूर्ण कथा - Bhajan Sangrah
GaanaGao1 year ago 164कौन हैं बाबा खाटू श्याम-
बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है। यह पांडुपुत्र भीम के पौत्र थे। पौराणिक कथा के अनुसार, खाटू श्याम की अपार शक्ति और क्षमता से प्रभावित होकर श्रीकृष्ण ने इन्हें कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था।
अभी डाउनलोड करें खाटू श्याम ऐप और घर बैठे पाए खाटू श्याम का आशीर्वाद !!-Click Here👈
खाटूश्याम जी की कहानी-
खाटूश्यामजी की कहानी महाभारत काल से शुरू होती है जिस वक़्त उनका नाम बर्बरीक था। बर्बरीक ,भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र था। बर्बरीक बचपन से ही बहुत वीर योद्धा था जिसने अपनी माँ से युद्ध कला सीखी थी। भगवान शिव ने बर्बरीक से प्रस्सन होकर उसे तीन अचूक बाण दिए जिसकी वजह से बर्बरीक को तीन बाण धारी कहा जाने लगा। उसके बाद अग्नि देव ने बर्बरीक को एक तीर दिया जिससे वो तीनो लोको पर विजय प्राप्त कर सकता था। जब बर्बरीक को पता चला कि पांड्वो और कौरवो के बीच युद्ध अटल है तो वो महाभारत युद्ध का साक्षी बनना चाहता था। उसने अपनी माँ को वचन दिया कि वो युद्ध में भाग लेने की इच्छा रखता है और वो हारने वाली सेना की तरफ से लड़ना चाहता है। इसके बाद बर्बरीक नील घोड़े पर सवार होकर अपने तीन बाण लेकर युद्ध के लिए रवाना हो गया।
रास्ते में श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक को रोका ताकि वो उसकी शक्ति की परीक्षा ले सके | उन्होंने बर्बरीक को उकसाया कि वो वो केवल तीन तीरों से युद्ध कैसे लड़ेगा | इस बात का जवाब देते हुए बर्बरीक ने कहा कि उसका एक बाण ही दुश्मन की सेना के लिए काफी है और वो वापस अपने तरकश में लौट आएगा | बर्बरीक ने तब श्रीकृष्ण को बताया कि उसके पहले तीर से वो निशान बनाएगा जिसको उसे समाप्त करना है और उसके बाद तीसरा तीर छोड़ने पर उसके निशान वाली सभी चीजे तबाह हो जायेगी | उसके बाद वो तीर वापस तरकश में लौट आएगा | अगर वो दुसरे तीर का प्रयोग करेगा तो पहले तीर से जो भी निशान लगाये थे वो सभी चीजे सुरक्षित हो जायेगी | कुल मिलाकर वो एक तीर से तबाही और एक तीर से रक्षा कर सकता था |
जब श्री कृष्ण को बर्बरीक की शक्ति का पता चला तो उन्होंने बर्बरीक को शक्ति का नामुना देखना चाहा और कहा कि अगर वो जिस पीपल के पेड़ के नीचे खड़ा है उसके सभी पत्तो को आपस में भेद देगा तो उनको बर्बरीक की शक्ति पर विश्वास हो जाएगा | बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार कर ली तथा तीर छोड़ने से पहले ध्यान लगाने के लिए आँखे बंद कर दी | तब श्री कृष्ण से बर्बरीक को पता लगे बिना, पीपल की एक पपत्ती को तोडकर अपने पैरो के नीचे छुपा लिया | जब बर्बरीक ने पहला तीर छोड़ा तो सभी पत्तियों और निशान हो गये और अंत में सभी पत्ते श्री कृष्ण के पैरो के आस पास घुमने लगे |
अभी डाउनलोड करें खाटू श्याम ऐप और घर बैठे पाए खाटू श्याम का आशीर्वाद !!-Click Here👈
अब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि “तीर भी मेरे पैरो के चारो ओर क्यों घूम रहा है ? ” इस पर बर्बरीक ने जवाब दिया कि “शायद आपके पैरो के नीचे एक पत्ती रह गयी है और ये तीर उस छुपी हुयी पत्ती को निशाना बनाने के लिए पैरो के चारो ओर घूम रहा है ” | बर्बरीक ने श्री कृष्ण से कहा “ब्राह्मण राज आप अपना पैर यहा से हटा लीजिये वरना ये तीर आपके पैर को भेद देगा “| श्री कुष्ण के पैर हटते ही उस छुपी हुयी पत्ती पर भी निशान हो गया | उसके बाद बर्बरीक के तीसरे तीर से सारी पत्तिय इकठी हो गयी और आपस में बंध गयी | तब श्री कृष्ण ने समझ लिया कि बर्बरीक के तीर अचूक है लेकिन अपने निशाने के बारे में खुद बर्बरीक को भी पता नही रहता है |
इस घटना से श्री कृष्ण ने ये निष्कर्ष निकाला कि असली रण भूमि में अगर श्रीकृष्ण अगर पांडव भाइयो को अलग अलग कर देंगे और उन्हें कही छिपा देंगे ताकि वो बर्बरीक का शिकार होने से बच जाए तब भी बर्बरीक के तीरों से कोई नही बच पायेगा | इस प्रकार श्री कुष्ण को बर्बरीक की शक्ति का पता चल गया कि उनके अचूक तीरों से कोई नही बच सकता है | तब श्री कृष्ण ने युद्ध में उनकी तरफ से लड़ने का प्रस्ताव दिया | बर्बरीक ने अपनी गुप्त बात उनको बताई कि उसने अपनी माता को वचन दिया है कि वो केवल हार रही सेना की तरफ से लड़ेंगे |
कौरवो को भी बर्बरीक के इस वचन के बारे में पता था इसलिए उन्होंने युद्ध के पहले दिन अपनी ग्यारह अक्षौनी सेना को नही उतारा था ताकि जब कौरवो की सेना पहले दिन पांड्वो से हार जाए तो बर्बरीक कौरवो का सहयोग कर पांड्वो का विनाश कर देगा | इस प्रकार जब वो कौरवो की तरफ से लड़ेगा तो पांड्वो की लड़ रही सेना कमजोर हो जायेगी उसके बाद वो पांड्वो की सेना में चला जाएगा | इस तरह वो दोनों सेनाओ में घूमता रहेगा | श्री कृष्ण को अब लगने लगा था कि अगर बर्बरीक इस युद्ध में शामिल हुआ तो कोई भी सेना नही जीत पायेगी और अंत में कौरव-पांडव दोनों का विनाश हो जायेगा और केवल बर्बरीक शेष रह जाएगा | तब श्री कृष्ण ने विचार किया कि बर्बरीक को रोकने के लिए उनको बर्बरीक से उसकी जान मांगनी होगी |
तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की मांग की तब बर्बरीक ने कहा “प्रभु आपकी जो इच्छा हो मै आपको देने को तैयार हु ” | श्री कृष्ण ने दान में बर्बरीक का सिर माँगा | बर्बरीक भगवान श्री कृष्ण की अनोखी मांग को सुनकर चकित रहा गया और इस अनोखी मांग पर उस ब्राह्मण को अपनी असली पहचान बताने को कहा | श्री कृष्ण ने बर्बरीक को अपना विराट रूप दिखाया और बर्बरीक उसे देखकर धन्य हो गया | श्री कृष्ण ने तब बर्बरीक को समझाया कि “रण भूमि में युद्ध से पहले सबसे वीर क्षत्रिय की बलि देनी पडती है इसलिए मै तुमसे तुम्हारा सिर दान में मांग रहा हु और मै तुमको इस धरती का सबसे वीर क्षत्रिय होने का गौरव देता हूं ” |
अपने वादे को निभाते हुए श्रीकृष्ण के आदेश पर बर्बरीक ने अपना सिर दान में दे दिया | ये घटना फागुन महीने के शुक्ल पक्ष के 12 वे दिन हुयी थी | अपनी जान देने से पहले बर्बरीक ने श्री कृष्ण ने अपनी एक इच्छा जाहिर की वो महाभारत युद्ध को अपनी आँखों से देखना चाहता है | श्री कृष्ण ने उसकी ये इच्छा पुरी की और सिर अलग करने के बाद उनके सिर को एक उची पहाडी पर रख दिया जहा से रण भूमि साफ नजर आती थी | वही से बर्बरीक के सिर ने पूरा महाभारत युद्ध देखा था |
अभी डाउनलोड करें खाटू श्याम ऐप और घर बैठे पाए खाटू श्याम का आशीर्वाद !!-Click Here👈
युद्ध खत्म होने पर जब जीते हुए पांडव भाइयो ने एक दुसरे से बहस करना शूर कर दिया कि युद्ध की जीत का जिम्मेदार कौन है तो श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को इस निर्णय लेने को कहा कि किसकी वजह से पांडव युद्ध जीते | तब बर्बरीक के सिर ने सुझाव दिया कि श्री कृष्ण अकेल ऐसे है जिनकी वजह से महाभारत युद्ध में पांड्वो की जीत हुयी क्योंकि उनकी रणनीति की इस युद्ध में अहम भूमिका थी और इस धर्मं युद्ध में धर्म की जीत हुयी |
महाभारत युद्ध के बाद बर्बरीक के सिर को श्री कृष्ण ने रूपवती नदी में बहा दिया | कई सालो बाद कलयुग की शुरूवात में उनका सिर जमीम में दफन वर्तमान राजस्थान के खाटू गाँव में मिला | कलयुग की शुरवात में इस जगह को छुपाये हुए रखा गया | एक दिन उस जगह पर गाय के थन से अचानक उस जगह पर दूध गिरने लगा | इस चमत्कारी घटना को देखते हुए स्थानीय गाँव वालो ने उस जगह को खोदा और वो सिर बाहर निकाला | उस सिर को एक ब्राह्मण को सौप दिया गया जिसने कई दिनों तक उसकी पूजा की जब तक कि कोई चमत्कार न हो जाये | खाटू के राजा रूप सिंह चौहान को एक सपना आया कि उनको एक मन्दिर बनवाना है जिसमे के सिर को स्थापित करना है | तब मन्दिर का निर्माण शूरू किया गया और फागुन मास की शुक्ल पक्ष के 11 वे दिन उनकी प्रतिमा को स्थापित किया गया |
शीश के दानी की जय, खाटू नरेश की जय।
Singer - Bhajan Sangrah
और भी देखे :-
- Tune Hi Sambhala Tha Lyrics. तूने ही संभाला था लिरिक्स |
- गणेश चतुर्थी टेक्स्ट स्टेटस (ganesh chaturthi text status in hindi)
- शुकर करू तेरा खाटू वाले (Shukar Karun Tera Khatu Wale)
- अगर नाथ देखोगे अवगुण हमारे (Agar Nath Dekhoge Avgun Humare)
- दया थोड़ी सी कर दो ना (Daya Thodi Si Kar Do Na)
- दया करो माँ दया करो लिरिक्स (Daya Karo Maa Daya Karo Lyrics)
- ओ मैया तैने क्या ठानी मन में
- श्री सिद्धिविनायक मंत्र और आरती (Shree Siddhivinayak Mantra And Aarti Lyrics in Hindi and English)
- Kan Kan Mein Om Samaya Hai Lyrics. कण कण में ॐ समाया है लिरिक्स |
- दक्षिणेश्वर काली मंदिर
अगर आपको यह भजन अच्छा लगा हो तो कृपया इसे अन्य लोगो तक साझा करें।