Diwali 2023: दिवाली पर आतिशबाजी क्यों होती है? क्या है दिवाली पर पटाखे फोड़ने का महत्व - Bhajan Sangrah
GaanaGao1 year ago 181दिवाली सनातन धर्मावलंबियों का सबसे बड़ा और प्रमुख त्योहार है. 14 वर्ष के वनवास के बाद प्रभु राम के अयोध्या आगमन पर दीपों का यह पर्व मनाया गया था. अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर और रंगोली सजाकर भगवान राम का स्वागत किया था. तब से ही यह दीपोत्सव पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई. लेकिन दीप जलाने के अलावा भी दिवाली से जुड़ी कई अहम परंपराएं हैं, जिनका पीढ़ी-दर-पीढ़ी पालन होता आ रहा है. इसमें दीपावली से पहले घर की साफ-सफाई करना, दीपावली के दिन सजावट करना, नए कपड़े पहनना, पकवान बनाना, मां लक्ष्मी की पूजा करना आदि. इसके अलावा दिवाली से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण परंपरा है, पटाखे फोड़ना.
बहुत पुराना नहीं है पटाखे चलाने का इतिहास
दिवाली पर आतिशबाजी करने और पटाखे जलाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है. लेकिन इतिहास की नजर से देखें तो भारत में पटाखों का इतिहास बहुत पुरानी नहीं है. बल्कि दुनिया में ही आतिशबाजी की खोज कब हुई और कैसे खास मौकों पर खुशी का इजहार करने के लिए पटाखे फोड़ने का चलन शुरू हुआ, इस बारे में कई तरह के मत हैं. जानकारी के मुताबिक 16वीं सदी से बारूद का मिलिट्री में इस्तेमाल शुरू हुआ था. ऐसा माना जा सकता है कि उस समय कहीं ना कहीं नागरिकों द्वारा भी आतिशबाजी के तौर पर बारुद का इस्तेमाल हो रहा होगा. लेकिन यह तय है कि इनका इस्तेमाल बहुत बड़े स्तर पर नहीं होता था.
बाबर ने किया हथियार के रूप में पहली बार इस्तेमाल
हथियार के तौर पर बारुद का पहली बार इस्तेमाल मुगल बादशाह बाबर ने किया था. भारत ने जब बाबर पर आक्रमण किया था तो उसने दिल्ली सल्तनत के अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराने के लिए युद्ध में बारुद का इस्तेमाल हथियार के तौर पर किया था. कह सकते हैं कि उसकी जीत में बारुद के उपयोग का बड़ा योगदान रहा था. हालांकि सुरंग में विस्फोट डालकर उसमें ब्लास्ट करने की कहानियों का जिक्र बाबर के इस युद्ध से पहले भी मिलता है.
कुल मिलाकर सबसे बड़े पर्व दिवाली पर पटाखे फोड़ना खुशी और उत्सव को मनाने का एक तरीका है, जो धीरे-धीरे परंपरा बन गया है. हालांकि पर्यावरण प्रदूषण को देखते हुए हर साल पटाखे ना फोड़ने की अपील कुछ संगठनों द्वारा की जाती हैं. वहीं कुछ लोग दिवाली पर पटाखे फोड़ना शुभ मानते हैं.
Singer - Bhajan Sangrah
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