Krishna Janmashtami History: क्यों और कैसे मनाते हैं कृष्ण जन्माष्टमी, जानें इस दिन का इतिहास और महत्व - Bhajan Sangrah


Krishna Janmashtami 2023: जब जब धरती पर पाप और अधर्म हद से ज्यादा बढ़ा है, भगवान ने धरती पर अवतार लिया है। भगवान विष्णु किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए धरती पर अवतरित हुए। विष्णु जी का एक अवतार श्रीकृष्ण थे। मथुरा की राजकुमारी देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में जन्में कान्हा का बचपन गोकुल में माता यशोदा की गोद में बीता। राजा कंस से बचाने के लिए वासुदेव ने कान्हा के जन्म के बाद ही उन्हें अपने चचेरे भाई नंदबाबा और यशोदा को दे दिया था। श्रीकृष्ण ने अपने जन्म से लेकर जीवन के हर पड़ाव पर चमत्कार दिखाए। श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े कई किस्से हैं, जो मानव समाज को सीख देते हैं। अधर्म और पाप के खिलाफ सही मार्गदर्शन करते हैं। उनके जन्मदिवस को उत्सव की तरह हर साल भक्त मनाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व इस साल 18/19 अगस्त को मनाया जा रहा है। इस मौके पर जानिए कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास और महत्व।

कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास

भारत में कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार बहुत ही धूमधाम और श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि भाई कंस के अत्याचार को कारागार में रह सह रही बहन देवकी ने भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अपनी आठवीं संतान के रूप में श्रीकृष्ण को जन्म दिया था। भगवान विष्णु ने पृथ्वी को कंस के अत्याचार और आतंक से मुक्त कराने के लिए अवतार लिया था। इसी कथा के अनुसार हर साल भाद्रपद की अष्टमी को कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व

पुराणों के मुताबिक, श्रीकृष्ण त्रिदेवों में से एक भगवान विष्णु के अवतार हैं। कृष्ण के आशीर्वाद और कृपा को पाने के लिए हर साल लोग इस दिन व्रत रखते हैं, मध्य रात्रि में विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं। भजन कीर्तन करते हैं और जन्मोत्सव मनाते हैं। इस दिन के लिए मंदिरों कोकैसे मनाते हैं कृष्ण जन्माष्टमी?

जन्माष्टमी पर भक्त श्रद्धानुसार उपवास रखते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं। बाल गोपाल की जन्म मध्य रात्रि में हुआ था। इसलिए जन्माष्टमी की तिथि की मध्यरात्रि को घर में मौजूद लड्डू गोपाल की प्रतिमा का जन्म कराया जाता है। फिर उन्हें स्नान कराकर सुंदर वस्त्र धारण कराए जाते हैं। फूल अर्पित कर धूप-दीप से वंदन किया जाता है। कान्हा को भोग अर्पित किया जाता है। उन्हें दूध-दही, मक्खन विशेष पसंद हैं। इसलिए भगवान को भोग लगाकर सबको प्रसाद वितरित किया जाता है। 

क्यों और कैसे मनाते हैं दही हांडी?

कुछ जगहों पर जन्माष्टमी के दिन दही हांडी का आयोजन होता है। विशेषकर इसका महत्व गुजरात और महाराष्ट्र में है। दही हांडी का इतिहास बहुत दिलचस्प है। बालपन में कान्हा बहुत नटखट थे। वह पूरे गांव में अपनी शरारतों के लिए प्रसिद्ध थे। कन्हैया को माखन, दही और दही बहुत प्रिय था। उन्हें माखन इतना प्रिय था कि वह अपने सखाओं के साथ मिलकर गांव के लोगों के घर का माखन चोरी करके खा जाते थे। कान्हा से माखन बचाने के लिए महिलाएं माखन की मटकी को ऊंचाई पर लटका दिया करती, लेकिन बाल गोपाल अपने सखाओं के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाकर उसके जरिए ऊंचाई पर लटकी मटकी से माखन चोरी कर लेते। कृष्ण के इन्ही शरारतों को याद करने के लिए जन्माष्टमी में माखन की मटकी को ऊंचाई पर टांग दिया जाता है। लड़के नाचते गाते पिरामिड बनाते हुए मटकी तक पहुंचकर उसे फोड़ देते हैं। इसे दही हांडी कहते हैं, जो लड़का ऊपर तक जाता है, उसे गोविंदा कहा जाता है। 

कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी

भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी पर देवकी एवं वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म लिया. और जन्म के समय एक आकाशवाणी हुई कि देवकी का यह पुत्र कंस का वध करेगा और आगे जाकर उन्होंने अत्याचारी कंस का वध करके प्रजा को कंस के अत्याचार से बचाया।

कंस के अत्याचार से पूरी मथुरा नगरी में हाहाकार मचा हुआ था निर्दोष लोगों को सजा दी जा रही थी यहां तक कि कृष्ण के मामा कंस ने अपनी बहन देवकी तथा उनके पति वासुदेव को बेवजह काल-कोठरी (जेल) में डाल दिया।

इतना ही नहीं कंस अपने अत्याचार से देवकी के सात संतानों को पहले ही मार चुका था तथा देवकी के गर्भ से भगवान कृष्ण ने फिर इस पृथ्वी में आठवें पुत्र के रूप में जन्म लिया।

कृष्ण के जन्मदिन पर आकाश में घनघोर वर्षा होने लगी चारों तरफ घना अंधेरा छा गया. कृष्ण भगवान को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए वासुदेव सिर पर टोकरी में कृष्ण भगवान को रखते हुए यमुना की उफनती नदी को पार कर अपने मित्र नंद गोप के यहां पहुंच गए।

और वहां पर कृष्ण भगवान को यशोदा मां के पास सुला कर आ गए और इस तरह देवकी के पुत्र कृष्ण भगवान का यशोदा ने पालन-पोषण किया. इसलिए कहा जाता है कि भगवान कृष्ण की दो माताएं थी देवकी एवं यशोदा।

वृन्दावन में कहाँ मनायें उत्सव?

 

वृन्दावन का पवित्र शहर वह स्थान है जहाँ कृष्ण ने अपना बचपन और किशोरावस्था बिताई। यमुना नदी के तट पर स्थित, वृन्दावन वह स्थान है जहाँ कृष्ण ने अपनी गोपियों के साथ प्रसिद्ध रासलीलाएँ कीं । वृन्दावन में जन्म के दिन से 10 दिन पहले उत्सव शुरू हो जाता है। कृष्ण के जीवन पर रासलीलाएँ और नाटक और यहाँ तक कि महाकाव्य महाभारत के दृश्य भी, जिनमें भगवान कृष्ण एक अनिवार्य हिस्सा थे, पेशेवर कलाकारों द्वारा जन्माष्टमी के अवसर पर प्रस्तुत किए जाते हैं। ये नाटक बड़ी संख्या में पर्यटकों को वृन्दावन की ओर आकर्षित करते हैं ।

मथुरा में कहाँ मनाएँ जन्माष्टमी?

मथुरा शहर में हजारों मंदिरों के साथ , उत्सव जन्म के दिन से एक महीने पहले शुरू हो जाता है।

यहां मनाए जाने वाले जन्माष्टमी त्योहार के दो सबसे महत्वपूर्ण पहलू झूलनोत्सव और  घटा हैं। 

झूलनोत्सोव वह अनुष्ठान है जिसमें लोग अपने घरों में भगवान कृष्ण का स्वागत करने और शिशु कृष्ण के पालने का प्रतीक करने के लिए अपने घरों और मंदिरों के आंगन में झूले लगाते हैं और फूलों और रंगोलियों से सजाते हैं।

घाट मथुरा में उत्सव की एक और अनूठी विशेषता है, जहां शहर के सभी मंदिरों को चुने हुए थीम के रंग से सजाया जाता है, जिसमें मूर्ति कृष्ण के कपड़े भी शामिल हैं। वे पूरे एक महीने तक इस परंपरा का पालन करते हैं और इसके बिना त्योहार का जश्न पूरा नहीं होता है।

जन्म दिवस से पहले के दिनों में , रासलीलाएं (नृत्य-नाटक जो कृष्ण द्वारा अपने दिनों में लोकप्रिय रूप से किए जाते थे) विभिन्न समूहों द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं, विशेष रूप से 10-13 साल के बच्चों द्वारा। इसके अलावा,  जानकी भी बनाई जाती है, जो मिट्टी से बनी आकृतियाँ हैं जिनमें कृष्ण के जीवन के विभिन्न चरणों को दर्शाने वाले दृश्य पूरे मथुरा शहर में प्रदर्शित किए जाते हैं।

जन्माष्टमी के उत्सव का सर्वोत्तम अनुभव लेने के लिए मथुरा के इन मंदिरों में जाएँ:

  1. नंदगांव
  2. श्री कृष्ण जन्मस्थान मंदिर
  3. द्वारकादिरधीश मंदिर, मथुरा
  4. राधा वल्लभ मंदिर 

 

Singer - Bhajan Sangrah

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